भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए घोषणा की है कि अब भारत कुछ देशों के साथ सीधे भारतीय रुपये में अंतर्राष्ट्रीय बिज़नेस करेगा। अब तक ज्यादातर देशों के बीच व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता था, लेकिन यह फैसला डॉलर के लंबे समय से चले आ रहे वर्चस्व को चुनौती देता है।
दुनिया के कई देश पहले से डॉलर पर निर्भरता कम करने की दिशा में काम कर रहे हैं, और भारत का यह निर्णय उसी प्रयास का हिस्सा है। इससे न केवल भारत की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ेगी, बल्कि रुपये की अंतर्राष्ट्रीय पहचान भी मजबूत होगी।
भारतीय रुपये के लिए फायदे
इस फैसले का सबसे बड़ा फायदा भारतीय रुपये की ताकत बढ़ना है। जब दूसरे देश भारत के साथ रुपये में व्यापार करेंगे तो रुपये की मांग बढ़ेगी। इससे रुपये की कीमत में स्थिरता आएगी और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम होगा।
रुपये में व्यापार करने से भारत को डॉलर खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, जिससे मुद्रा विनिमय (Currency Exchange) में लगने वाला अतिरिक्त खर्च भी बचेगा। लंबे समय में इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर पड़ेगा और रुपया एक भरोसेमंद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उभरेगा।
इसके अलावा, रुपये में लेन-देन से भारतीय कंपनियों को भी फायदा होगा। उन्हें भुगतान में देरी, डॉलर के उतार-चढ़ाव और विदेशी बैंकिंग सिस्टम की जटिलताओं से छुटकारा मिलेगा।
डॉलर पर असर
डॉलर की ताकत इस वजह से है कि दुनिया का अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उसी में होता है। अमेरिका को इससे कई फायदे मिलते हैं जैसे:
- हर ट्रांज़ैक्शन पर अमेरिकी बैंक और वित्तीय संस्थानों को लाभ।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था में राजनीतिक और आर्थिक दबदबा।
अगर भारत समेत अन्य देश अपनी मुद्रा में व्यापार करने लगते हैं, तो डॉलर की मांग कम हो जाएगी। इसका मतलब है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी दबाव बढ़ेगा और उसका अंतर्राष्ट्रीय वर्चस्व कमजोर होगा।
अमेरिकी डॉलर से व्यापार करने के नुकसान
डॉलर में व्यापार करने से भारत और कई अन्य देशों को नुकसान उठाना पड़ता है।
कन्वर्ज़न लॉस (Currency Conversion Loss): पहले रुपये को डॉलर में बदलना पड़ता है और फिर डॉलर से दूसरी मुद्रा में। इसमें समय और पैसा दोनों खर्च होते हैं।
अमेरिका पर निर्भरता: डॉलर की कीमत और उसका स्थिर रहना अमेरिकी नीतियों पर निर्भर करता है। अगर अमेरिका में आर्थिक मंदी आती है या नीतियों में बदलाव होता है, तो उसका सीधा असर बाकी देशों पर भी पड़ता है।
राजनीतिक दबाव: डॉलर-आधारित व्यापार से अमेरिका को कई बार अपने राजनीतिक हित साधने का मौका मिलता है। रुपये में व्यापार शुरू होने से भारत इन समस्याओं से काफी हद तक बच सकेगा।
भारत की आगे की रणनीति
भारत ने पिछले कुछ सालों में लगातार ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे डॉलर पर निर्भरता घटे। अभी भारत 18 देशों के साथ रुपये या स्थानीय मुद्रा में व्यापार कर रहा है, इनमें रूस, चीन, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और नेपाल शामिल हैं।
आगे चलकर भारत BRICS देशों के साथ साझा करेंसी बनाने या सोने पर आधारित व्यापार प्रणाली लागू करने पर भी विचार कर सकता है।
हाल ही में भारत ने अमेरिका को भेजी जाने वाली जेनेरिक दवाओं के निर्यात में 57% की कमी की है, और रूस से कच्चे तेल का आयात दोगुना कर दिया है। ये कदम बताते हैं कि भारत अपनी आर्थिक नीतियों में स्वतंत्र और रणनीतिक रुख अपना रहा है।
अमेरिकी सरकार का रिएक्शन
अमेरिका इस तरह के फैसलों को लंबे समय से एक चुनौती के रूप में देखता रहा है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और कई अन्य अमेरिकी नेताओं ने कहा है कि अगर BRICS जैसे देश डॉलर से दूरी बनाते हैं, तो इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा।
अमेरिकी अर्थशास्त्री मानते हैं कि अगर डॉलर का दबदबा कम हुआ, तो अमेरिका को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। साथ ही, मौजूदा हालात में अमेरिका में मंदी की संभावना भी जताई जा रही है, जिससे डॉलर की स्थिति और कमजोर हो सकती है।